आज भी मौजूद है भगवान श्री कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख,इसके अलावा 6 चीजे आज भी हैं कहीं

महाभारत और पुराणों में मिलता है इसका जिक्र
सनातन धर्म में शंखों को धार्मिक आयोजनों में विशेष माना गया है। मान्यता है इसकी ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसकी शक्ति और चमत्कारों का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है। इसे विजय, समृद्धि, सुख, शांति, यश, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शंख नाद का प्रतीक है। शंख ध्वनि शुभ मानी गई है। हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं। लेकिन इनके 3 प्रमुख प्रकार दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख माने गए हैं। इससे इतर श्रीकृष्ण का पाञ्चजन्य शंख है जो अत्यंत विशेष है। तो आइए इस विषय में विस्तार से जानते हैं|
महाभारत में मिलता है इन शंखों का भी जिक्र
जानकारी के अनुसार महाभारत में श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य, अर्जुन के पास देवदत्त, युधिष्ठिर के पास अनंतविजय, भीष्म के पास पोंड्रिक, नकुल के पास सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक नामक शंख था। इन सभी के शंखों का महत्व और शक्ति अलग-अलग थी। लेकिन इन सभी में पाञ्चजन्य शंख को अत्यंत दुर्लभ शंख माना गया है।
समुद्र मंथन के दौरान हुई थी इसकी उत्पत्ति
पाञ्चजन्य बहुत ही दुर्लभ शंख है। मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से 6वां रत्न शंख था। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार श्रीकृष्ण के गुरु के पुत्र पुनरदत्त को एक बार एक दैत्य उठा ले गया। उसी गुरु पुत्र को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए। वहां उन्होंने देखा कि एक शंख में दैत्य सोया है। उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रखा और फिर जब उन्हें पता चला कि उनका गुरु पुत्र तो यमपुरी चला गया है तो वे भी यमपुरी चले गए। वहां यमदूतों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया तब उन्होंने शंख का नाद किया जिसके चलते यमलोक हिलने लगा।
तब कृष्ण ने शंख से किया था नए युग का आरंभ
जब यमलोक हिलने लगा तो यमराज ने स्वयं आकर श्रीकृष्ण को उनके गुरु के पुत्र की आत्मा को लौटा दिया। भगवान श्रीकृष्ण बलराम और अपने गुरु के साथ पुन: धरती पर लौट आए और उन्होंने अपने गुरु पुत्र के साथ ही पाञ्चजन्य शंख को भी गुरु के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। गुरु ने पाञ्चजन्य को पुन: श्रीकृष्ण को देते हुए कहा कि यह तुम्हारे लिए ही है। तब गुरु की आज्ञा से उन्होंने इस शंख का नाद कर पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया।
कई किलोमीटर तक जाती है इस शंख की ध्वनि
कहते हैं कि भगवान कृष्ण के पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी। महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे बल्कि इससे कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी। इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है। इसमें 5 अंगुलियों की आकृति होती है। हालांकि पाञ्चजन्य शंख अब भी मिलते हैं लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं। इन्हें घर को वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।
ऐसी है शंख को लेकर आज की मान्यता
मान्यता है कि यह शंख करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में काछवा व बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम में रखा था, जहां से यह चोरी हो गया। यहां सनातन धर्म से जुड़ीं कई बेशकीमती वस्तुएं थीं। 20 अप्रैल 2013 को इस शंख के चोरी होने की बात कही जाती है। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का यह शंख आदि बद्री में सुरक्षित रखा है।
नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
[ डिसक्लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]