आत्मा मनुष्य के मरने के कितने दिन बाद दोबारा जन्म लेती हैं?

आत्मा मनुष्य के मरने के कितने दिन बाद दोबारा जन्म लेती हैं?

जर्नी ऑफ दी सोल के लेखक और प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ माइकल न्यूटन ने अपनी पास्ट लाइफ रिग्रेशन की रिसर्च के बाद स्पष्ट किया है कि स्पिरिट वर्ल्ड यानि आत्मलोक में आत्माओं को जन्म लेने की स्वतंत्रता होती है। वह जब तक चाहें जन्म लेने से रुक सकती हैं। लेकिन इस बीच उनका आत्मिक विकास रुक जाता है क्योंकि आत्मिक विकास के लिए अनुकूल और प्रतिकूल घटनाओं व चुनौतियों का होना जरूरी है। इसलिए अपने आत्मिक विकास के लिए आत्मायें पृथ्वी पर अपना जीवन काल चुनती रहती हैं। अगर इसे आप खुद ही देखना चाहते हैं तब आप ओशोधारा का महाजीवन प्रज्ञा कार्यक्रम कर सकते हैं जिसमे आप अपने पूर्वजन्मों व जन्म -मृत्यु को अचेतन मन की स्मृतियों में जाकर देख सकते हैं।

 

यदि मेरे मरने के बाद मेरी आत्मा ज़िन्दा रहती है, तो मेरे जन्म लेने से पहले मेरी आत्मा कहाँ थी?

आपने जो प्रश्न पूछा है, उसमे इस जीवन के उपरान्त और इस जीवन से पहले के सारे आयाम आ जाते है। इसमें बहुत जटिलता है, और अगर इस पर कुछ लिखने बैठे तो शायद 2–3 किताबें भी कम रह जाय।

मैं शायद इस पर पर लिख कर न्याय न कर पाऊँ, तो कुछ लिखूंगा नहीं। अन्यथा कुछ जानकारी देने के बजाय बहुत से प्रश्न खड़े हो जाएंगे। कुछ लोग शायद उन बातों का अर्थ कुछ और निकाल कर मिथ्या ही बना दें।

मृत्यु के बाद और जीवन से पहले का जितना मुझे पास्ट लाइफ रिग्रेशन द्वारा पता चला है, वहः हर बार मेरी मान्यतों और समझ को चुनौती देता है। हर बार लगता है कितना कम जानते है हम उस छुपी हुई दुनिया के बारे में। जी पूरी दुनिया है वहां, रिश्ते है, मुकाम है, राजनीति भी है। जीवन और मृत्यु चक्र इतना भी सरल नहीं है।

बस् अभी आप यह समझ लीजिये की आपकी आत्मा का आपके शरीर के बहार भी एक अस्तित्व है। आपके शरीर के जीने मरने से उस आत्मा को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह आपके शरीर के बिना भी खुश है कहीं, लेकिन जीवन उसकी एक मजबूरी हो जाती है, इसलिए उसे जन्म लेना पड़ता है। कुछ आत्माएं बिना जन्म लिए भी रहती है।

सर्वप्रथम कोई मृत्यु असमय नहीं होती केवल आत्महत्या को छोड़कर। आत्मा का भटकना उसकी इच्छाओं पर निर्भर है। यदि आत्मा मृत्यु को स्वीकार नहीं करती, ऐसे में वह भटकती है। ऐसी आत्मओं का हश्र भी बहुत बुरा होता है। कभी किसी दुष्ट तांत्रिक की ग़ुलाम बन जाती है, कभी दुसरे शक्तिशाली प्रेतों की ग़ुलाम। ऐसे में बुरे कर्म इनसे करवाये जाते है, और ऐसी आत्माएं फिर मुक्ति के मार्ग पर लौट कर नहीं आ सकती। हाँ, यदि कोई अच्छा साधक इनकी मुक्ति करवाएं, तो अवश्य ही अनेक योनि में जन्म ले यह वापस जन्म मरण के बंधन से कर्मों द्वारा मुक्ति पाने के लिए स्वछंद हो जाती है। इसलिए कहा जाता है जीते जी अपनी इच्छाओं का त्याग कर दो, ताकि यह आत्मा मृत्यु को स्वीकार सके। अन्यथा मृत्यु समय से हो या असमय से, आत्मा भटकेगी जरूर, और उपरोक्त संकट उसके मार्ग में आएंगे।

नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)

[ डि‍सक्‍लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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