अंतिम संस्कार के बाद राख को गंगा में क्यों प्रवाहित करते हैं ?

जब आप शरीर को जला देते हैं, तो राख को भेद मिटाने वाली व समता लाने वाली चीज के तौर पर देखा जाता है। जो विभूति आप लगाते हैं, उसका एक पहलू यह है कि जब आप उसे शरीर के एक खास हिस्से पर लगाते हैं तो यह आपके भीतर एक संतुलन लाती है, क्योंकि विभूति का काम समता लाना है। खास किस्म की साधना करने वाले लोग या वे लोग जो विभूति का प्रयोग बेहद तीव्र तरीके से करना चाहते हैं, हमेशा श्मशान से ही राख लेते हैं।
घर पर रखने से राख के आस प्राणी मंडराएगा
श्मशान भूमि की राख – लकड़ी की राख नहीं, शरीर की राख – में एक खास गुण होता है। इसे फैला देने के पीछे एक विचार तो यह है कि अगर ऐसा न किया जाए तो आप इसका करेंगे क्या, किसी पात्र में लेकर घर में रख लेंगे? अगर आप अस्थि कलश घर में रख लेते हैं, तो आप इसको लेकर बेवजह भावुक बने रहेंगे। दूसरी बात यह है कि इस राख में शरीर के गुण मौजूद रहते हैं। अगर श्मशान से आप किसी के शरीर की राख को लें और उस इंसान का डीएनए आपके पास है, तो फॉरेंसिक लैब वाले यह बता देंगे कि यह राख उस शख्स की है, क्योंकि राख में उस इंसान के कुछ खास गुण मौजूद हैं।
मृत्यु के बाद जीव शरीर को पूर्ण रूप से छोड़ने में 40 दिनों तक समय लेता है। आप चाहे शरीर को जला दें, यह फिर भी शरीर के कुछ तत्वों जैसे राख या अस्थियों, या फिर जो चीज़ें उससे सम्बंधित थीं जैसे कि उसके उपयोग किए गए कपड़ों को ढूँढ़ता है।
इसीलिये, हिंदु परिवारों में जैसे ही किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उसके द्वारा पहने गये कपड़े, ख़ास तौर से वे कपड़े जो शरीर को छूते थे, जैसे कि अंदर के वस्त्र, जला दिए जाते हैं। इसका कारण यही है कि मृत्यु के बाद भी जीव अपने शरीर के तत्वों जैसे पसीने को, गंध को ढूंढता है, क्योंकि अब भी उसे ये अहसास नहीं होता कि यह सब छूट चुका है। तो अगर आप अस्थियों को किसी जगह रख देते हैं तो जीव उसके आसपास मंडराता रह सकता है। इसलिये, अस्थियों को, राख को नदी में विसर्जित कर देते हैं जिससे वे फ़ैल जायें और बह जायें, पानी में विलीन हो जायें। तो फिर ये मिल नहीं सकतीं। हर संभव कोशिश की जाती है, ताकि उस जीव को अहसास हो जाए कि अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है।
अघोरी हमेशा युवा मृत शरीर को ढूंढते हैं
अगर किसी जवान इंसान की मौत होती है, तो वे श्मशान में पहुंच जाते हैं और ऐसा व्यवहार करेंगे जैसे वह आपकी मदद के लिए वहां हों। कुछ खास तरह के अनुष्ठान करने के लिए तो वे शरीर को भी चुरा सकते हैं। फिर व्यान-प्राण का इस्तेमाल करके, जो कि शरीर में धीरे-धीरे मंद होता है, वे उस शरीर को सक्रिय कर देते हैं और एक खास तरीके से उस पर सवार हो जाते हैं। वे उस पर बैठकर साधना करना चाहते हैं। क्या आपको पता है इस बारे में? क्या आपने नहीं देखा कि स्वयं शिव भी मृत शरीर पर बैठे हैं और अघोरी के तौर पर साधना कर रहे हैं? अघोरी हमेशा युवा मृत शरीर को ही ढूंढते हैं और उसपर बैठकर साधना करते हैं, क्योंकि वे मृत शरीर के व्यान प्राण और ऊर्जा का इस्तेमाल करके उसे सक्रिय करना चाहते हैं, जिससे उससे वे अपने काम करा सकें। वे इसे अपने वश में कर लेना चाहते हैं।
नदी में बहाने से कोई राख हासिल नहीं कर पाएगा
कई बार लोग पहाड़ों पर जाकर हवा में उस राख को उड़ा देते हैं, जिससे कोई जरा सी भी राख पाकर उसका दुरपयोग न कर सके। लोग नहीं चाहते कि उनके प्रियजन जादू- टोने का शिकार बनें। इसी कारण राख को नदी में बहा दिया जाता है, क्योंकि एक बार अगर आपने ऐसा कर दिया तो कोई भी राख को हासिल नहीं कर पाएगा। यह फसलों के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि एक समय में ज्यादातर फसलें नदियों के डेल्टा में ही उगाई जाती थीं। राख डेल्टा क्षेत्र को उपजाऊ ही बनाती है। इस तरह यह परंपरा दोनों ही तरीकों से उपयोगी है, हालांकि ज्यादा महत्वपूर्ण यही है कि किसी प्रियजन के शरीर की राख गलत हाथों में न पड़े।
नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
[ डिसक्लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]