भगवान श्रीकृष्ण को गांधारी ने दिया था श्राप, महाभारत के युद्ध के 36 साल बाद ऐसे हुआ था विनाश

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन को देखा जाए, तो पता चलता है कि वो केवल भगवान ही नहीं बल्कि एक युग पुरुष थे। जिन्होंने काफी ऐसे कार्य किए जिसे हम आज की क्रांति से जोड़ सकते हैं। दुविधा में फंसे अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता ज्ञान देकर सही और गलत में अंतर करके न्याय युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया लेकिन अपने पुत्र मोह में गांधारी ने इस न्याय युद्ध को अपने पुत्रों की मृत्यु का एक षडयंत्र घोषित करते हुए श्रीकृष्ण और उनके वंश के नाश होने का श्राप दे दिया। आइए, जानते हैं महाभारत की यह कहानी-
गांधारी का श्राप
युद्ध के बाद महर्षि व्यास के शिष्य संजय ने जब गांधारी को इस बात की जानकारी दी कि अपने साथियों और द्रौपदी के साथ पांडव हस्तिनापुर में आ चुके हैं, तो उनका दुखी मन गम के सागर में गोते लगाने लगा, सारी पीड़ा एकदम से बाहर आ गई। उनका मन प्रतिशोध लेने के लिए व्याकुल हो रहा था इसके बावजूद भी वह शांत थी, लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि पांडवों के साथ भगवान श्रीकृष्ण भी हैं तो वह क्रोधित हो गईं। उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दिया।
गांधारी ने कहा “अगर मैंने भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा की है तथा निस्वार्थ भाव से अपने पति की सेवा की है, तो जैसा मेरा कुल समाप्त हो गया, ऐसे ही तुम्हारा वंश तुम्हारे ही सामने समाप्त होगा और तुम देखते रह जाओगे। द्वारका नगरी तुम्हारे सामने समुद्र में डूब जाएगी और यादव वंश का पूरा नाश हो जाएगा। ” श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए गांधारी को उठाया और कहा “ ‘माता’ मुझे आपसे इसी आशीर्वाद की प्रतीक्षा थी, मैं आपके श्राप को ग्रहण करता हूं। हस्तिनापुर में युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका चले गए।
गांधारी के श्राप का प्रभाव
श्राप में गांधारी ने जो कहा था वह सच होने लगा। द्वारका में मदिरा का सेवन करना प्रतिबंधित था लेकिन महाभारत युद्ध के 36 साल बाद द्वारका के लोग इसका सेवन करने लगे। लोग संघर्षपूर्ण जीवन जीने की बजाए धीरे-धीरे विलासितापूर्ण जीवन का आनंद लेने लगे। गांधारी और ऋषियों के श्राप का प्रभाव यादवों पर इस तरह हुआ कि उन्होंने भोग-विलास के आगे अपने अच्छे आचरण, नैतिकता, अनुशासन तथा विनम्रता को त्याग दिया।
एक बार यादव उत्सव के लिए समुद्र के किनारे इकट्ठे हुए। वह मदिरा पीकर झूम रहे थे और किसी बात पर आपस में झगड़ने लगे। झगड़ा इतना बढ़ा कि वे वहां उग आई घास को उखाड़कर उसी से एक-दूसरे को मारने लगे। उसी घास से यदुवंशियों का नाश हो गया साथ ही, द्वारका नगरी भी समुद्र में डूब गई। कहा जाता है कि साम्ब को मिले श्राप की वजह से उगी हुई घासों में जहरीले लोहे के तत्व थे, इसलिए उगी हुई घासें जहरीली थी।
नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
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