भारत में पैसा कहा और कैसे छपता है ?

भारत में पैसा कहा और कैसे छपता है ?

नासिक में छापखाना कामगार परिसंघ ने स्याही खत्म होने के कारण नोटों की छपाई बंद होने का दावा किया है। परिसंघ अध्यक्ष जगदीश गोडसे का कहना है कि नोटों की छपाई में आयातित स्याही का इस्तेमाल होता है। भारत में नोट छपाई में इस्तेमाल होने वाली 50 फीसदी स्याही आयातित होती है। अगले तीन से पांच साल के बाद ही नोट छपाई की स्याही के उत्पादन में भारत के आत्मनिर्भर होने की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार ने भारत में स्याही आयात करने वाली कंपनियों को भारत में अपनी यूनिट लगाने के लिए कहा है। इस संबंध में सहमति भी बन गई है।

देश में चार जगहों पर छपते हैं नोट, पिछले वित्त वर्ष 926.5 करोड़ पीसेज नोटों की आपूर्ति की गई थी
भारत में चार जगहों पर नासिक, देवास, मैसूर व सालबोनी (प. बंगाल) में नोट छपाई का काम किया जाता है। देवास की बैंक नोट प्रेस और नासिक की करेंसी नोट प्रेस वित्त मंत्रालय के अधीन काम करने वाली सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के नेतृत्व में काम करते हैं। वहीं मैसूर और सलबोनी के प्रेस भारतीय रिजर्व बैंक की सब्सिडियरी कंपनी भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड के अधीन काम करते हैं। नासिक और देवास से वित्त वर्ष 2016-17 में 926.5 करोड़ पीसेज नोट की आपूर्ति आरबीआई को की गई।

महात्मा गांधी की तस्वीर के लिए इंटैगलियो इंक

नोट छापने की स्याही का आयात मुख्य रूप से स्विटजरलैंड से किया जाता है। इंटैगलियो, फ्लूरोसेंस और ऑप्टिकल वेरिएबल इंक का इस्तेमाल। आयात होने वाली स्याही के कंपोजिशन में हर बार बदलाव करवाया जाता है ताकि कोई और देश नकल नहीं कर सके।
इंटैगलियो इंक: इसका इस्तेमाल नोट पर दिखने वाली महात्मा गांधी की तस्वीर छापने में किया जाता है।
फ्लूरोसेंस इंक : नोट के नंबर पैनल की छपाई के लिए इस इंक का उपयोग किया जाता है।
ऑप्टिकल वेरिएबल इंक : नोट की नकल न हो पाए इसलिए इस इंक का इस्तेमाल होता है।

आयातित के मुकाबले घरेलू स्याही 4-5 गुना सस्ती
2015 के अप्रैल माह में आरबीआई के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोट छपाई में 100 फीसदी घरेलू पेपर और स्याही के इस्तेमाल की बात कही थी। हालांकि, उसके बाद से नोट छापने वाली स्याही के घरेलू उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। घरेलू स्याही की कीमत आयातित स्याही की कीमत के मुकाबले 4-5 गुना कम होती है।

चीन-पाकिस्तान से कमर्शियल संबंध रखने वाली कंपनी से सप्लाई नहीं

महाराष्ट्र में स्याही बनाने की यूनिट लग सकती है और इस काम में तीन से पांच साल लग सकते हैं। इसके बाद ही स्याही का आयात बंद हो पाएगा। चीन और पाकिस्तान से कमर्शियल संबंध रखने वाली कंपनी से स्याही और सिक्योरिटी थ्रेड का आयात नहीं किया जाता है। कंपनी को यह भी घोषित करना पड़ता है कि उनके किसी कर्मचारी ने पाकिस्तान या चीन में काम नहीं किया है।

नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
[ डि‍सक्‍लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

kavya krishna

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