ब्रम्हा-विष्णु-महेश में से सबसे बड़ा कौन है

जब से सृष्टि का आरंभ हुआ तबसे कई बार यह सवाल उठा की ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से बड़ा कौन है. हमारे पुराणोंमें इसके विषय में कई कथा मिलती है. सनातन धर्म में कई सारे संप्रदाय है और सब संप्रदाय में अपने अपने इष्टदेव को अधिक महत्त्व दिया गया है, फिर भी यह सनातन धर्म की महानता है की हर संप्रदाय दुसरे संप्रदाय का आदर और सन्मान करता है. इतिहास में ऐसी कोई भी घटना का जिक्र नहीं जहाँ एक संप्रदाय का किसी दुसरे संप्रदाय के साथ संघर्ष हुआ हो. हमारे पुराणोंमें इश्वर की प्रधानता के विषय में दो कथा मिलती है. एक कथा शिव महा पुराण में मिलती है और दुसरी भगवत कथा में मिलती है.
जानिए शिव पुराण की कथा क्या है
शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु में विवाद हो गया की उन दोनों में से कौन बड़ा है. जब विवाद इतना बढ़ गया की उन दोनों में युद्ध की नौबत आ गई तब उन दोनों के मध्य एक बड़ा सा अग्नी स्तंभ प्रगट हो गया. अब उन दोनों ने यह निश्चय किया की जो भी पहले इस अग्नि स्तंभ की अंत को पा लेगा वहीं श्रेष्ठ है. भगवान विष्णु उस स्तंभ के अंत को पाने के लिए निचे की ओर गए और ब्रह्माजी उपर की तरफ गए. दोनों में से कोई भी इस अग्नि स्तभ के अंत को पाने में सफल ना रहा. भगवान विष्णु ने तो अपनी हार स्वीकार कर ली परन्तु ब्रह्माजी ने असत्य कहा की उन्हें अंत मिल गया है इसलिए में श्रेष्ठ हूँ.
ब्रह्माजी के मुख से असत्य सुनकर उस अग्नि स्तंभ में से शिवजी प्रगट हुए और उन्हों ने ब्रह्माजी के पांच मुख में से जो मुख असत्य बोला था उसे काट दिया ओर यह श्राप दिया की संसार में उनकी पूजा नहीं होगी. भगवान विष्णु से प्रसन्न होकर उन्हें अपने समान पूजे जाने का वरदान दिया . यह कथा शिव पुराण की है जिसके अनुसार शिवजी सबसे बड़े है.
जानिए श्रीमद भागवत कथा में क्या कहा है इस विषय में
एक बार सप्तऋषियों में यह चर्चा हो रही था कि ब्रह्मा,विष्णु और महेश में से बड़ा कौन है. इसलिए उन्होंने त्रिदेवो की परीक्षा लेने का सोचा और यह कार्य भृगु ऋषि को सौपां गया. अपने इस उदेश्य से भृगु ऋषि परम पिता ब्रह्मा के पास गए और उन्होंने उनका अपमान किया. इस अपमान से ब्रह्माजी क्रोधित हो गए बाद में भृगु ऋषि शिवजी के पास गए उन्होंने शिवजी का भी अपमान किया. फिर वह भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ गए जहां भगवान विष्णु अपनी शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे.
महर्षि भृगु ने जाकर सीधे भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर लात मारी. इनके इस कृत्य से भगवान विष्णु को तनिक भी क्रोध नही आया और उन्होंने भृगु के पैर पकड़ लिए और कहा महर्षि आप के पैर में कई कोई चौट तो नहीं लगी. मेरा वक्षस्थल बहुत कठोर है और आप के पैर बहुत ही कोमल है. भगवान विष्णु की यह विनम्रता को देखकर महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु से क्षमा माँगी और फिर सप्त ऋषियोँ ने यह स्वीकार कर लिया की ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से भगवान विष्णु ही श्रेष्ठ है.
मेरी द्रष्टि से भगवान जो करते है वह लीला है और उनकी लीला के पीछे क्या कारण होता है वह भृगु जैसे महर्षि भी जान नहीं सकते. ब्रह्मा. विष्णु और महेश तो सर्वज्ञ है. उन्हें जरुर ज्ञात हो गया होगा की भृगु उनकी परीक्षा ले रहे है. ऐसा ना होता तो वह भृगु ऋषि को दंड जरुर देते. देखा जाए तो भृगु ऋषि की लात उस महाकाली के चरण के आगे कुछ नहीं जो महाकाली ने महादेव की छाती पर रख दिया था और सृष्टि की रक्षा के लिए महादेव ने महाकाली के पाँव की ठोकर खाना स्वीकार किया था.
इन कथाओ के बावजूद मुझे लगता है की इन तीनो में से कौन बड़ा और कौन श्रेष्ठ है यह तुलना हमारे जैसे मनुष्य नहीं कर सकते. शिव पुराण और विष्णु पुराण दोनों में इन तीनो देवो को अभिन्न बताया गया है. हमारे पुराणोंमें यहाँ तक कह दिया है की जो मनुष्य शिव द्रोह करके विष्णु की पूजा करता है और जो मनुष्य विष्णु द्रोह करके शिव की पूजा करता है उनकी पूजा का कभी स्वीकार नहीं होती. गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि रुद्रोमें में शंकर हु. इसका मतलब यह भी होता है की जो रूद्र है वह कृष्ण है और जो कृष्ण है वहीँ रूद्र है.
गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि जो भक्त मुझे जिस तरह भजता है में उसे वैसे ही रूप में प्राप्त होता हूँ. इसका मतलब यह होता है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश वास्तव में एक ही परम तत्व है. जब यह तीनो एक ही परम तत्व है तो यह तुलना करना संभव ही नहीं है कि कौन बड़ा है. तुलना तो वहां की जाती है जहाँ दूसरा कोई मौजूद हो.