चौक जाएंगे आप जानकर पद्मनाभ स्वामी मंदिर का रहस्य

पद्मनाभ स्वामी मंदिर
तिरुवनंतपुरम शहर के बीच में स्थित है श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर। इस मंदिर को बहुत ही खूबसूरती से द्रविड़ शैली में बनाया गया है, इस शहर को इस मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर में भगवान विष्णु वास करते हैं, यहां भगवान विष्णु, ब्रह्मांडीय नागिन अनाथन पर सहारा लेकर विराजमान की मुद्रा में हैं। मंदिर में भगवान विष्णु की पत्नियां श्रीदेवी और भूदेवी भी उनके साथ हैं। । मंदिर की देख-रेख त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार द्वारा की जाती है। पद्मनाभ स्वामी की मूर्ति मंदिर का मुख्य आकर्षण है। मंदिर 12,000 सालिग्रामों से बना है और यह “कतुसर्करा योगम“ से ढंका हुआ है। इस मंदिर की कुल संपत्ति लगभग 1,32,000 करोड़ है, जिसमें सोने की मूर्तियां, सोना, पुरानी चांदी, हीरे, पन्ने और पीतल शामिल है। इस खज़ाने में कीमती पत्थरों से जड़ें दो स्वर्ण नारियल के गोले भी हैं। हर 6 साल में एक बार मंदिर में 56 दिन तक चलने वाले मुराजपम का आयोजन किया जाता है।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर से जुड़े पौराणिक तथ्य –
यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ‘पद्मनाभ’ कहा जाता है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा मिली थी जिसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर का निर्माण राजा मार्तण्ड ने करवाया था। मंदिर में एक स्वर्णस्तंभ भी बना हुआ है जो मंदिर की खूबसूरती में इजाफा करता है। मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है जो इसकी भव्यता में चार चाँद लगा देती है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर ड्रेस कोड –
मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास –
भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाम मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया था। इसका जिक्र 9 शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है। लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ दास बताया। इसके बाद शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया। माना जाता है कि इसी वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दी। त्रावणकोर के राजाओं ने 1947 तक राज किया। आजादी के बाद इसे भारत में विलय कर दिया गया। लेकिन पद्मनाभ स्वामी मंदिर को सरकार ने अपने कब्जे में नहीं लिया। इसे त्रावणकोर के शाही परिवार के पास ही रहने दिया गया।तब से पद्मनाभ स्वामी मंदिर का कामकाज शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है। जानकारों का ये भी कहना है कि जब भारत सरकार हैदराबाद के निजाम जैसे देश के शाही परिवारों की दौलत को अपने कब्जे में ले रही थी तब हो सकता है कि त्रावणकोर के तत्कालीन राजा ने अपनी दौलत मंदिर में छुपा दी हो।
श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर रहस्य –
सन 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित अधिकारियों के पांच सदस्यीय पैनल ने इस मंदिर के नीचे बने कुल छह प्राचीन तहखानों में से पांच तहखानों को खोल दिया जो सदियों से बंद थे। हालांकि, इनमें से एक तहखाने (तहखाना संख्या बी) का दरवाजा अबतक नहीं खोला जा सका है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तहखाने को खोलने पर फिलहाल रोक लगा दिया है। पूरी दुनिया के आश्चर्य का ठिकाना उस वक्त नहीं रहा जब केरल के श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर के नीचे बने पांच तहखानों के अंदर से तकरीबन 22 सौ करोड़ डॉलर का खजाना प्राप्त हुआ। इनमें बहुमूल्य हीरे-जवाहरातों के अलावा सोने के अकूत भंडार और प्राचीन मूर्तियां भी निकलीं साथ ही हर दरवाजे के पार अधिकारियों के पैनल को प्राचीन स्मृतिचिह्नों के अंबार भी मिलते गये। मगर जब अधिकारियों का ये दल आखिरी चेंबर यानी चेंबर बी तक पहुंचा तो लाख मशक्कत के बावजूद भी उस दरवाजे को खोल पाने में वे कामयाब नहीं हो सका।
तीन हफ्ते बाद ही याचिकाकर्ता की मौत –
पद्मनाभस्वामी मंदिर के नीचे बने पहले पांच तहखानों को खोलने के तीन हफ्ते बाद ही टीपी सुंदरराजन यानी वो व्यक्ति जिन्होंने अदालत में उन दरवाजों को खुलवाने की याचिका दाखिल की थी, पहले बीमार पड़े और फिर उनकी मौत हो गई। अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई। अगले ही महीने मंदिर के भक्तों की एक संस्था ने ये चेतावनी जारी कर दी कि अगर किसी ने उस आखिरी कक्ष को खोलने की कोशिश भी की तो उसका अंजाम बहुत बुरा हो सकता है। इसके बाद त्रावणकोर के राजवंश और ख्यातिलब्ध ज्योतिषों के बीच ‘देव प्रश्नम्’ (चर्चा) हुई। इस चर्चा में ज्योतिषों ने अपनी गणना के बाद यह कहकर सबको चौंका दिया कि अगर तहखाना नंबर ‘बी’ को खोलने का प्रयास किया गया तो सिर्फ केरल ही नहीं पूरी दुनिया में भीषण तबाही आ सकती है।
तीन दरवाजों से बंद है चेम्बर
जोसफ कैम्पबेल आर्काइव से जुड़े शोधकर्ता जोनाथन यंग के अनुसार वहां तीन दरवाजे हैं, पहला दरवाजा छड़ों से बना लोहे का दरवाजा है। दूसरा लकड़ी से बना एक भारी दरवाजा है और फिर आखिरी दरवाजा लोहे से बना एक बड़ा ही मजबूत दरवाजा है जो बंद है और उसे खोला नहीं जा सकता। चेंबर बी में लिखी चेतावनियों के बीच नाग सांपों के चित्र भी बने हुए हैं जिनकी डरावनी आकृतियां ये चेतावनी देती हैं कि अगर इन दरवाजों को खोला गया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।
अष्टनाग बंधन से बंद हैं दरवाजे
अमेरिका स्थित क्लेयरमाउंट लिंकन युनिवर्सिटी में हिन्दू स्टडी के प्रोफेसर दीपक सिमखाड़ा के अनुसार आखिरी दरवाजे पर ताले भी नहीं लगे हैं, उसमें कोई कुंडी तक नहीं है, कहा जाता है कि उसे एक मंत्र से बंद किया गया है जिसे ‘अष्टनाग बंधन मंत्र’ कहा जाता है। प्रोफेसर के अनुसार वो सटीक मंत्र क्या है ये कोई नहीं जानता।
दिव्य विग्रह के ठीक नीचे है तहखाना
सूत्रों के अनुसार श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर में अनंतशायी भगवान विष्णु के विशाल विग्रह के ठीक नीचे ही स्थित तहखाना नंबर ‘B’।
क्या अंदर बंद है कोई शापित वस्तु ?
मशहूर किताब ‘दि सिंक्रॉनिसिटी की’ के ऑथर डेविड विलकॉक के अनुसार उस कमरे के अंदर जो कुछ भी है वो शायद किसी अनोखे शाप से ग्रस्त है। अगर कोई उसके भीतर दाखिल होने की कोशिश भी करता है तो उसकी किस्मत फूट जाती है, वो बीमार हो जाता है और जान भी जा सकती है।
हो सकता है भारी अनिष्ट
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर के नीचे बने तहखानों को खोलने की कवायद चल रही थी तब गोवर्द्धनपीठ के शंकराचार्य स्वामी अधोक्षानन्द ने यह कहकर सबको चौंका दिया था कि मंदिर के नीचे स्थित तहखाना नंबर बी का दरवाजा खुलते ही पूरी दुनिया में अनिष्ट होने का खतरा है।
तो पहले खुल चुका है ये तहखाना –
मंदिर के पुराने रिकार्ड की मानें तो इस मंदिर के नीचे बने उक्त तहखाने को खोलने का प्रयास 139 साल पहले भी हो चुका है। वहीं सूत्रों की मानें तो सन 1930 के दशक में भी सभी तहखानों को खोलने की कोशिश की गई थी। तब एहतियात के तौर पर मंदिर के बाहर एंबुलेंस भी बुलाई गई थी। सिर्फ इतना ही नहीं त्रावणकोर राजपरिवार से जुड़े सूत्रों की मानें तो राजवंश के किसी सदस्य को दिव्य स्वप्न आने के बाद इस दरवाजे को खोला जाता रहा है। कहा तो ये भी जाता है कि इस दरवाजे के भीतर से एक रास्ता सीधे समुद्र की तरफ जाता है।
नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
[ डिसक्लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]