जानिए भगवान विष्णु केअश्वमुखी अवतार से जुड़ी यह पौराणिक कथा

हमारे पौराणिक ग्रंथों में भगवान विष्णु को जगत का पालनहार माना जाता है. भगवान विष्णु के संदर्भ में ऐसी कई पौराणिक कथाएं उल्लेखित हैं, जब भक्त की पुकार मात्र से भगवान विष्णु ने बिना समय व्यर्थ गंवाए भक्त के प्राणों की रक्षा की. वह भगवान विष्णु ही थे, जो देवताओं एवं मानवों के हित की रक्षा के लिए कभी वामन बनें तो कभी मत्स्य, कभी कच्छप बनें तो कभी नृसिंह के रूप में अवतरित होकर भक्त की रक्षा की. इसी क्रम में बहुत कम लोगों को यह कथा पता होगी, जब हयग्रीव नामक राक्षस से देवताओं एवं मनुष्यों की रक्षा के लिए विष्णु जी को अपना ही वध करवाना पड़ा. इस बार उन्हें अश्वमुखी हयग्रीव का रूप लेकर अवतरित होना पड़ा और हयग्रीव नामक राक्षस का वध भी करना पड़ा. आखिर क्या थी कहानी अश्वमुखी अवतार की, चलिए जानते हैं.
विष्णु पुराण के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु वैकुंठ धाम अपने धनुष की डोरी के सहारे काफी गहरी निद्रा में लीन थे. उसी समय हयग्रीव नामक राक्षसराज ने देवलोक के साथ-साथ पृथ्वी लोक में भी खूब उत्पात मचा रखा था. उसे कुछ ऐसे वरदान हासिल थे कि देवतागण उससे टकराने का साहस नहीं कर पा रहे थे. अपनी ताकत के दम पर उसने स्वर्गलोक से सारे देवताओं को भगाकर उस पर कब्जा कर लिया था. हारकर सभी देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. उन्हें हयग्रीव के आतंक के बारे में बताते हुए कहा, कि अगर उसका तुरंत वध नहीं किया गया तो देवताओं का अंत निश्चित है.
ब्रह्मा जी ने हयग्रीव का वध करने में असमर्थता जाहिर करते हुए देवताओं को विष्णु जी के पास जाने के लिए कहा. देवताओं ने जब बताया कि सर्वप्रथम वे विष्णु जी के पास ही गये थे, लेकिन भगवान विष्णु जिस तरह गहरी निद्रा में थे, उन्हें जगाकर उनके कोप का भाजन वे नहीं बनना चाहते थे. तब ब्रह्मा जी विष्णु जी को गहरी निद्रा से जगाने के लिए वम्री नामक एक कीड़े को भेजा. किंवदंती है कि उस कीड़े ने भगवान विष्णु के धनुष की डोर को काट दिया. डोर के कटने से उसी डोर से विष्णु जी का सिर धड़ से अलग हो गया.विष्णु जी का सिर कटते ही पूरे ब्रह्माण्ड में अंधेरा छा गया. सभी देवता, यक्ष, किन्नर ऋषि-मुनि सभी व्याकुल हो उठे. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अब भगवान विष्णु कैसे जीवित होंगे, कैसे ब्रह्माण्ड में रोशनी होगी.
अंततः ब्रह्मा जी ने देवताओं को सुझाव दिया कि वे सभी मिलकर मां भगवती का स्तुतिगान करें. देवताओं की पूजा-अर्चना से मां भगवती बहुत प्रसन्न हुईं. उन्होंने देवताओं से हयग्रीव की शक्ति के बारे में बताया कि उसने तपस्या करके ऐसे वरदान प्राप्त कर लिये हैं कि उसका वध देवी-देवता कोई नहीं कर सकता. तब दुखी देवताओं ने हयग्रीव के वध का रहस्य पूछा तो माता भगवती ने बताया कि हयग्रीव का वध कोई अश्वमुखी हयग्रीव मनुष्य ही कर सकता है
देवी ने देवताओं को यह भी बताया कि हयग्रीव को मारने के लिए ही विष्णु जी ने पहले अपना शीश गंवाया है ताकि उस पर अश्व का शीश लगाकर हयग्रीव राक्षस के जीवन का अंत कर सकें. इसके पश्चात माता भगवती ने स्वयं विष्णु जी के धड़ पर एक घोड़े का शीश जोड़ा. इसके पश्चात ही विष्णु हयग्रीव का वध करने में सफल हो सके. हयग्रीव के वध के पश्चात देवताओं ने स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार हासिल किया.
नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
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