जन्म लेने के साथ ही व्यक्ति के मौत का समय भी तय हो जाता है?

जीवन का शाश्वत सत्य है मृत्यु। जन्म लेने के साथ ही व्यक्ति के मौत का समय भी तय हो जाता है। मौत से हर कोई डरता है लेकिन मौत का अनुभव व्यक्ति को जीवन की सच्चाई बता जाता है। लोगों को यह जानने की जिज्ञासा कम नहीं होती कि आखिर मृत्यु के बाद क्या होता है। ऐसे लोग भी हुए हैं जिन्हें मृत्यु का पहले से ही आभास हो गया था। यहां आपको ऐसे आभासों और अनुभवों के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि मृत्यु के तुरंत पहले महसूस किए जाते हैं। जब आपको यह महसूस हो जाए कि आपकी जिंदगी अब कुछ ही पलों की है तो उनका वह अनुभव अदभूत होता है।
मृत्यु पूर्व आभासों के बारे में अलग-अलग तरह से उल्लेख मिलता है। बहुत लोग मृत्युपूर्व आभासों को नहीं मानते। लेकिन साइंस ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि मरने के कुछ पल पहले इंसान कुछ सोचता है।
वैज्ञानिकों द्वारा किए सर्वे के मुताबिक मौत के पास पहुंचकर जो अनुभव होते हैं वे एक व्यक्ति का भौतिक दुनिया से जुड़ाव तो कम करते ही हैं साथ ही उसे उस रास्ते पर चलने के लिए भी प्रेरित करते हैं जो आत्मा को गंतव्य स्थान तक पहुंचाता है।
मौत के करीब पहुंच व्यक्ति शरीर के साथ आत्मा के मरने का भी अनुभव करता है। कई बार ऐसी घटनाएं घटित होती हैं जब मौत के मुंह में पहुंचने के बाद व्यक्ति को जीवनदान मिल जाता है। आपने ऐसे भी कई किस्से सुने होंगे जब अंतिम संस्कार के समय ही व्यक्ति दोबारा जीवित हो उठता है। इन्हीं लोगों के साक्षात्कार के आधार पर प्राप्त परिणामों को वैज्ञानिकों ने अपने शोध की स्थापनाएं बनाया है।
आत्मा को उड़ते देखा
ऐसे कुछ किस्सों में से एक है अमेरिका में रहने वाली एक महिला जोकि वेंटिलेटर पर अपनी आखिरी सांसे ले रही थी। इस महिला की आंखों की रोशनी बहुत कमजोर थी, बावजूद इसके उसने महसूस किया कि अपने पीछे रखी मशीन पर लिखे अंक देख पा रही है। यही नहीं उसने खुद को ऊपर की ओर उड़ता हुआ देखा। कुछ देर बाद उसकी आत्मा ने फिर से शरीर में प्रवेश कर लिया। डॉक्टरों के अनुसार वह किसी भी क्षण मर सकती थी लेकिन मृत्यु के समीप पहुंचकर वापस आ गई। इसे विज्ञान की भाषा में आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरियेंस कहा जाता है।
मायने रखता है माहौल
वैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति जिस वातावरण में पला-बढ़ा है, उसका धर्म और धार्मिक मान्यताएं, उसके मौत के निकट पहुंचकर होने वाले अनुभवों को बयां करते है। एक वयस्क जब नीयर डेथ एक्सपीरियंस का अनुभव करता है तो इस अनुभव में उसका मौत का डर, सामाजिक और धार्मिक वातावरण बहुत मायने रखता है। लेकिन जब एक छोटा बच्चा इन अनुभवों से गुजरता है तो उसे कैसा महसूस होता है, क्योंकि उसे ना तो मौत का अर्थ पता होता है और ना ही उसे किसी प्रकार से धर्म का कोई जुड़ाव होता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पांच से सात साल तक के बच्चे मृत्यु को नहीं समझते और ना ही उन्हें पूर्वजन्म की अवधारणा से कुछ लेना-देना होता है इसलिए उनके भीतर किसी प्रकार का भय नहीं होता। उन्हें भी कुछ ऐसे ही अनुभव होते हैं जो किसी वयस्क को हो सकते हैं।
स्वर्ग-नरक का फेर
हर धर्म में आत्मा के दो गंतव्य स्थानों का जिक्र किया गया है, एक नरक और दूसरा स्वर्ग। ऐसा कहा जाता है कि जीवन में अच्छे कर्म करने वाले लोगों की आत्माएं स्वर्ग की ओर प्रस्थान करती हैं वहीं बुरे कर्म करने वाली आत्माएं नर्क जाती हैं। व्यक्ति बहुत अच्छे से जानता है कि जीवनभर उसके कर्म अच्छे थे या बुरे। शायद उससे बेहतर कोई और यह बात जान भी नहीं सकता, इसलिए जब मौत उसके निकट होती है तब उसकी आत्मा अपने कर्मों के आधार पर ही स्वर्ग या नरक जाने की यात्रा शुरू कर देती है।
ऐसी भी मान्यताएं
मौरो के अनुसार हिंदुओं में अजीब मान्यता है। वे स्वर्ग को एक विशाल नौकरशाही के तौर पर देखते हैं। भैंसे को कर्मों का हिसाब रखने वाले मृत्यु देव यमराज की सवारी माना जाता है इसलिए हिन्दू धर्म से जुड़े ऐसे लोग जिन्होंने मौत को बहुत नजदीकी से देखा है, का कहना है कि वह एक भैंसे के ऊपर बैठकर अपनी अंतिम यात्रा कर रहे थे। बौद्ध धर्म से जुड़े लोग, जिन्होंने नीयर डेथ एक्सपीरियंस किया है उनके अनुसार उनकी अंतिम यात्रा काले पहाड़ों, गहरे समुद्र और आसपास रंगीन फूलों के रास्ते से गुजरी। उन्होंने इस दौरान महात्मा बुद्ध को अपने साथ देखा। वहीं हिन्दू धर्म के लोगों ने रास्ता तो यही बताया लेकिन उन्होंने बुद्ध को नहीं बल्कि कृष्ण को देखा था।
जीवित व्यक्तियों के मृत्यु के निकट होने जैसे आभास को समझने के बाद यह कहा जा सकता है कि जीवित अवस्था में आपके विचार, विश्वास, मरने के बाद आपकी यात्रा को बहुत प्रभावित करते हैं और इन सभी में धर्म भी एक बड़ा रोल निभाता है।
नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
[ डिसक्लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]