जन्म लेते ही बच्चे क्यों रोते हैं इसका क्या कारण है विष्णु पुराण?

मित्रों जब कोई बच्चा मां के गर्भ से जन्म लेता है तो उसका रोना स्वाभाविक है। परन्तु क्या आपने कभी सोचा है कि जिस बच्चे ने अपनी पहली सांस ली है, उसके जन्म लेते ही रोने का क्या कारण हो सकता है
तो मित्रों हमारे हिंदू धर्म शास्त्रों में वैसे तो उसके पीछे की एक पुरानी कथा की मान्यता है जिसका वर्णन हमें विष्णु पुराण में मिलता है। परंतु इसके साथ ही चिकित्सा जगत में भी चिकित्सीय दृष्टि से इसके पीछे के कुछ कारणों की वेख्या की गई है।
आज के पोस्ट में हम बात करने जा रहे हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णित उस पौराणिक कथा के बारे में जो कि बच्चे के पहले रूदन से जुड़ी हुई है। मतलब जन्म लेते ही शिशु का रोना क्यों जरुरी ?
बच्चे जन्म लेते ही रोते क्यों हैं?
नमस्कार मित्रों स्वागत है। आपका हिंदी में हेल्प ब्लॉग पर मित्रों क्या आपने कभी ध्यान दिया है। जन्म के समय जब बच्चे रोते हैं? तुम के रोने की आवाज कैसी होती है जैसे मैं पूछ रहा हूं। कहां कहां ऐसा इसलिए होता है क्योंकि धरती पर आने के बाद उसे लगता है कि वह कहां गए। वह परमब्रह्मा से कहता है कि हे भगवान मुझे फिर से संसार में क्यों भेज दिया,
लेकिन यह ईश्वरी विधान है कि जो जीवित है उसकी मृत्यु एक दिन होनी ही है और जिसकी मृत्यु हो चुकी है। उसे नया शरीर लेकर पुनः इस पृथ्वी पर आना है। इसी तरह ब्रह्मा का सृष्टि चक्र चलता है। ब्रह्मा की सृष्टि संचार क्रम से जुड़े एक वर्सन की व्याख्या विष्णु पुराण में भी की गई है, जिसमें बच्चे के पहले रुदन का रहस्य छिपा है।
विष्णु पुराण में सृष्टि रचना के समय का जो वर्णन मिलता है उसमें ब्रह्मा जी जब अपने समान पुत्र उत्पन्न करने के लिए चिंतन करने लगे तब उनकी गोद में नीलवर्ण वाला एक बालक प्रकट हुआ।
यह बालक ब्रह्मा जी की गोद से उतर कर रोता हुआ इधर-उधर भागने लगा। ब्रह्मा जी ने उस बालक से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो? प्रश्न के उत्तर में बालक ने कहा कि मैं कहां हूं। में कहा हूं , में कोन हूँ । मेरा नाम क्या है। इस पर ब्रह्मा जी ने उसे बताया कि जन्म लेते ही तुम ने रोना शुरू कर दिया।
इसलिए अब से तुम्हारा नाम रुद्र है। ब्रह्मा जी द्वारा नाम बताने के बाद यह बालक सात फिर रोया इसलिए ब्रह्मा जी ने उसे उसको अन्य 7 नाम और दिए। इस प्रकार है भव , शर्व , ईशान पशुपति, भीम उग्र और महादेव
इस तरह रूद्र के यह 8 नाम हुए कहा जाता है। तभी से बच्चे के जन्म के बाद रोने की परंपरा शुरू हुई क्योंकि इससे पहले बच्चे जन्म के उपरांत नहीं होते थे और हमारे हिंदू शास्त्र विष्णु पुराण में इससे संबंधित इसी मान्यता का वर्णन मिलता है।
इसके बिल्कुल विपरीत यदि हम नवजात सुसु हमने पहले रुदल से जुड़े प्रश्न का उत्तर चिकित्सीय जगत में ढूंढे तो इससे जुड़ा एक दूसरा दृष्टिकोण में आता है।
दरअसल नवजात शुसु जन्म से पूर्व गर्भनाल के माध्यम से सांस ले रहा होता है परंतु कुछ सेकंड बाद बच्चे को खुद से सांस लेना पड़ता है और जब नवजात सुसु सांस लेता है तो मैं अपनी नाक और मुंह में जमे तरल पदार्थ को बाहर करता है।
वास्तव में शिशु जो मां के गर्भ में होता है तब ये सास नहीं लेता। यह economic नामक एक थैली में होता है । जिसमे economic द्रव भरा होता है। उस समय शिशु के फेफड़ों में हवा नहीं होती बल्कि उसके फेफड़ों में भी economic द्रव भरा होता है।
इस स्थिति में बच्चे को सारा पोषण अपनी मां के द्वारा गर्भनाल के जरिए मिलता है। मां की शरीर से बच्चे के बाहर आते ही गर्भनाल काट दिए जाती है। इसके बाद शिशु को को उल्टा लटका कर उसके फेफड़ों से एमनियोटिक द्रव निकाला जाता है जो कि एक जरूरी प्रक्रिया है ताकि फेफड़े सांस लेने के लिए तैयार हो सके। इसके लिए जरूरी है कि बच्चा लंबी सांस लें, जिससे फेफड़े के कोने-कोने से एमनियोटिक द्रव निकल जाए और फेफड़ों कार्यमक अकयी KY L,तक हवा आने जाने पर का मार्ग खुल जाता है
द्रव के निकल जाने पर सास का मार्ग खुल जाता है और वायु का संचार होने लगता है। इन सब के लिए रोने की क्रिया महत्वपूर्ण काम करती है। दरअसल रोते समय बच्चा गहरी सांस लेता है। यही वजह है कि जन्म के बाद अगर बच्चा खुद नहीं रोता है तो उसे हल्की सी चपत लगाकर रोलाय जाता है। क्योंकि यदि बच्चा जन्म के तुरंत बाद न रोए तो इस द्रव के फेफड़ों में होने के कारण बच्चे को ऑक्सीजन नहीं मिल पाएगी और उसकी मौत का कारण भी बन सकती है।
नवजात शिशु रोना कितना जरूरी है
गर्भ में पलने के बाद बच्चा जब जन्म लेता है तो वह अगले 24 घंटे बहुत शांत रह सकता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि बच्चा बाहर के वातावरण के साथ स्वयं को अनुकूल कर रहा होता है।
बच्चे का पहली बार होना सबसे ज्यादा जरूरी होता है। अगर बच्चा पहली बार नहीं रोता है तो डॉक्टर उसके स्वास्थ्य से संबंधित जांच करना शुरू कर देते हैं। कई बार बच्चे का ना रोना बच्चे की मौत का कारण भी बन जाता है। यह भी कहा जाता है कि शिशु रोना इसलिए भी जरूरी होता है क्योंकि वह रोने के माध्यम से ही अपनी जरूरतों को बताता है।
चिकित्सक विशेषज्ञ ये मानते है की बच्चे के रोने की आवाज मां सो रही होती है तब भी उसे सुनाई दे जाती है। यह एक प्रकृति का नियम जैसा है। स्वस्थ शिशु 25 घंटे में लगभग 3 घंटे तक रो सकता है। कई बार कुछ शिषु उससे ज्यादा रोने की आदत देखी जाती है। ज्यादा तर बच्चे सुबह के समय और दोपहर के बाद शाम को रोते हैं। परंतु यदि बच्चा 40 मिनट से 1 घंटे तक लगातार हो रहा है तो यह गम्भीर बात हो सकती है और इसका परामर्श हमें तुरंत डॉक्टर से करना चाहिए ।
तो दोस्तो ये थी जन्म लेते ही बच्चे क्यों रोते हैं इसका क्या कारण है विष्णु पुराण? उम्मीद करता हूं आज का ये पोस्ट आपको पसन्द जरूर आया होगा ।
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)