जयगढ़ के किले में छुपा है अरबों का खजाना, पाकिस्तान ने भी मांगा था हिस्सा

जयगढ़ के किले में छुपा है अरबों का खजाना, पाकिस्तान ने भी मांगा था हिस्सा

भारत को प्राचीनकाल में यूंही नहीं सोने की चिड़िया कहा जाता था। कहा जाता है कि मध्यकाल में जब भारत पर कई आक्रमण हुए तो यहां के राजा-महाराजाओं ने अपनी धन-संपदा को बचाने के लिए छुपा दिया। इनमें से कई खजाने इतने विशाल हैं कि आज की तारीख में भारत की आर्थिक स्थिति बदल सकते हैं।

इंदिरा गांधी बनाम महारानी गायत्री देवी – 1947 में भारत आजाद हुआ, आजादी के दौरान जयपुर के महाराजा थे सवाई मान सिंह द्वितीय, जिनकी शादी हुई थी महारानी गायत्री देवी से। महारानी गायत्री देवी की पढ़ाई लिखाई रविन्द्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन के पार्थो भवन में हुई थी। उस समय जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा भी वहां पढ़ती थीं। कहा जाता है कि दोनों के रिश्तों के बीच तल्खी छात्र जीवन से ही जारी थी। शादी के बाद कूच बिहार की राजकुमारी गायत्री देवी बन गईं जयपुर की महारानी और इंदिरा गांधी बनीं भारत की प्रधानमंत्री।

खजाने की खोज – 1975 में देशभर में आपातकाल लागू के करने के एक साल बाद 10 जून 1976 को इंडियन आर्मी, राजस्थान पुलिस और इनकम टैक्स की टीमों ने जयपुर के जयगढ़ किले पर रेड डाली। पूरे किले को खोदकर तहस नहस कर दिया गया। कर्फ्यू जैसे माहौल होने के बावजूद जयपुर में ये खबर फैल गई कि इंदिरा गाँधी के बेटे संजय के आदेश पर सेना और पुलिस आमेर का खजाना खोज रही है। यह सवाल उठा कि खजाना अगर आमेर में है तो छापा जयगढ़ के किले पर क्यों। जवाब मिला कि ये दोनों किले सुरंग के जरिए आपस में जुड़े हुए हैं।

मान सिंह ने ऐसे जमा किया था खजाना-

अकबर के नौ रत्नों के बारे में यदि सुना है, तो राजा मान सिंह को आसानी से पहचाना जा सकता है। ये अपनी बुद्धिमत्ता और सैन्य कुशलता के कारण अकबर के दिल के काफी करीब थे। उन्हें प्यार से ‘राजा मिर्जा’ भी कहा जाता था। बतौर सेनापति मान सिंह ने अकबर के लिए कई ऐतिहासिक जंग जीती थीं। मुगलों की आदत रही कि उन्होंने ​देश के जिस भी राज्य या रियासत पर हमला किया और जीत हासिल की उसे लूट लिया। चूंकि जीत में मानसिंह का श्रेय भी कम नहीं था, इसलिए संपत्ति में भी उसका बराबर का अधिकार रहा।

मान सिंह से पहले उनके पिता राजा भगवानदास ने भी अकबर के लिए गुजरात युद्ध में मुख्य भूमिका अदा की थी। मान सिंह पारिवारिक रूप से पहले ही सक्षम थे। उनका जन्म 1540 में हुआ था और वे अम्बेर रियासत के राजा थे। मुगल बादशाह से दोस्ती के बाद उनका कद समस्त भारत में बढ़ गया। हल्दीघाटी के युद्ध में तो उन्होंने महाराणा प्रताप की सेना को परस्त कर शानदार विजय हासिल की थी।

जब पाकिस्तान ने मांगा अपना हिस्सा – सोचने वाली बात यह है कि जयगढ़ किले से जयपुर की महारानी का क्या संबंध हो सकता है! तत्कालीन दस्तावेजों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि राजा जयसिंह (द्वितीय) ने 1726 में जयगढ़ किले का निर्माण करवाया था। पर इस महल में बनाई गई सुरंग का दूसरा हिस्सा मानसिंह के 1592 में बनवाए गए आमेर किले में खुलता था। यानि आमेर का किला और जयगढ़ किला आपस में जुड़े हुए थे। इसलिए सरकार ने खुदाई तो जयगढ़ किले में करवाई पर उसके रास्ते वे आमेर किले तक बनी सुरंग में दबे सोने को तलाश रही थी। बहरहाल भारत सरकार का यह खुफिया अभियान पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से न छिप सका। अगस्त, 1976 में पाकिस्तान के तत्कालीन वजीर-ए-आजम ने इंदिरा गांधी को खत लिखा।

क्यों शक के घेरे में है सरकार – सरकार ने भले ही खजाना न मिलने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया हो, पर यह बात लोगों के गले नहीं उतरी। कहा जाता है कि जिस दिन आयकर विभाग और सेना ने किले की खुदाई का काम बंद किया और अभियान खत्म होने की घोषणा हुई। उसके ठीक एक दिन बाद अचानक बिना किसी कारण के दिल्ली-जयपुर हाईवे आम लोगों के बंद कर दिया गया। माना जाता है कि सरकार को किले से संपत्ति बरामद हुई थी और उसे ट्रकों में भरकर दिल्ली लाया गया था। ​चूंकि सरकार जनता को इसी भनक नहीं लगने देना चाहती थी इसलिए हाईवे बंद कर दिया गया। हाईवे बंद होने की घटना पर कांग्रेस ने कभी कोई सफाई पेश नहीं की। राजघराने के कई सदस्य हैं, जो सरकार के दावे पर विश्वास नहीं करते।

कहा जाता है कि 1977 में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद जयपुर राजघराने को किले से बरामद संपत्ति का कुछ हिस्सा लौटाया गया था। हालांकि सच आपतकाल की भेंट चढ़ गया। अपनी साख बचाने के लिए सरकार ने कहा कि किले में खजाना था ही नहीं। इतिहासकारों के मुंह से कहलवाया कि खजाना था, पर उसका इस्तेमाल रियासतों ने जयपुर और आसपास के क्षेत्रों के विकास के लिए कर लिया था। इन सभी दावों के बीच सच का पता आज तक नहीं चल पाया।

नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)

[ डि‍सक्‍लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

kavya krishna

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