कृष्ण के अलावा इन्होंने भी दिया था गीता का उपदेश, जानें अर्जुन से पहले किसे मिला था यह ज्ञान?

महाभारत से पहले किसी को मिला था गीता ज्ञान
वासुदेव श्रीकृष्ण ने महाभारत के दौरान कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। यह हो हम सभी जानते हैं। लेकिन क्या आपको ये पता है कि गीता का उपदेश मुरलीधर इससे पहले भी दे चुके थे। यही नहीं उनके अलावा भी कई बार गीता का ज्ञान दिया जा चुका है। तो आइए जानते हैं कि गीता के उपदेश का यह लाभ अर्जुन से पहले किसे मिला? साथ ही कब-कब-किसने और किसे गीता का यह ज्ञान दिया है?
अर्जुन से पहले कन्हैया ने इन्हें दिया था गीता ज्ञान
कथा के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हैं, तब उन्होंने ये भी बोला था कि ये उपदेश पहले वे सूर्यदेव को दे चुके हैं। तब अर्जुन ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि सूर्यदेव तो प्राचीन देवता हैं तो आप सूर्यदेव को ये उपदेश पहले कैसे दे सकते हैं। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि तुम्हारे और मेरे पहले बहुत से जन्म हो चुके हैं। तुम उन जन्मों के बारे में नहीं जानते, लेकिन मैं जानता हूं। इस तरह गीता का ज्ञान सर्वप्रथम अर्जुन को नहीं बल्कि सूर्यदेव को प्राप्त हुआ था
तब संजय ने दिया था धृतराष्ट्र को यह ज्ञान
कथा के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, उस समय संजय (धृतराष्ट्र के सारथी, जिन्हें महर्षि वेदव्यास ने दिव्य दृष्टि दी थी) अपनी दिव्य दृष्टि से वह सब देख रहे थे और उन्होंने गीता का उपदेश धृतराष्ट्र को सुनाया था।
कथा के अनुसार जब महर्षि वेदव्यास ने मन ही मन महाभारत की रचना की तो बाद में उन्होंने सोचा कि इसे मैं अपने शिष्यों को कैसे पढ़ाऊं? महर्षि वेदव्यास के मन की बात जानकर स्वयं ब्रह्माजी उनके पास आए। तब महर्षि ने उन्हें महाभारत ग्रंथ की रचना के बारे में बताया और कहा कि इस पृथ्वी पर इसे लिखने वाला कोई नहीं है। तब ब्रह्मदेव ने कहा कि आप इसके काम के लिए श्रीगणेश का आवाहन कीजिए। महर्षि वेदव्यास के कहने पर श्रीगणेश ने ही महाभारत ग्रंथ का लेखन किया। महर्षि वेदव्यास बोलते जाते थे और श्रीगणेश लिखते जाते थे। इसी समय महर्षि वेदव्यास ने श्रीगणेश को गीता का उपदेश दिया था।
महर्षि वेदव्यास ने इन्हें भी दिया ज्ञान
श्रीगणेश के अलावा महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों वैशम्पायन, जैमिनी, पैल सहित अन्य को महाभारत के गूढ़ रहस्य समझाए। इसी के तहत महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों को गीता का भी ज्ञान दिया।
पांडवों के वंशज राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ के पूरे होने पर महर्षि वेदव्यास अपने शिष्यों के साथ राजा जनमेजय की सभा में गए। वहां राजा जनमेजय ने अपने पूर्वजों (पांडव व कौरवों) के बारे में महर्षि वेदव्यास से पूछा। तब महर्षि वेदव्यास के कहने पर उनके शिष्य वैशम्पायन ने राजा जनमेजय की सभा में संपूर्ण महाभारत सुनाई थी। तभी उन्होंने गीता का उपदेश भी दिया था।
ऋषि उग्रश्रवा ने दिया था इनको गीता का ज्ञान
ऋषि उग्रश्रवा एक बार नैमिषारण्य पहुंचे तो वहां कुलपति शौनक 12 वर्ष का सत्संग कर रहे थे। जब नैमिषारण्य के ऋषियों व शौनकजी ने उन्हें देखा तो उनसे कथाएं सुनाने का आग्रह किया। तब उग्रश्रवा ने कहा कि मैंने राजा जनमेजय के दरबार में ऋषि वैशम्पायन के मुख से महाभारत की विचित्र कथा सुनी है, वही मैं आप लोगों को सुनाता हूं। इस तरह ऋषि उग्रश्रवा ने शौनकजी के साथ-साथ नैमिषारण्य में उपस्थित तपस्वियों को महाभारत की कथा सुनाई। तभी उन्होंने गीता का भी उपदेश दिया था।
नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
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