लड़कों का कान छिदवाना शुभ या अशुभ? जरूर जान लें पियर्सिंग से होने वाले ये असर

आजकल लड़का-लड़का दोनों ही पियर्सिंग करा रहे हैं और वह भी शरीर के तकरीबन हर हिस्से में कराई जा रही है. पियर्सिंग कराना किस हद तक सही है और लड़कों के मामले में शास्त्रों में क्या कहा गया है, आइए जानते हैं.
कान छिदवाने या कर्णभेद संस्कार को सनातन धर्म में 16 संस्कारों में से एक माना गया है. हालांकि लड़कियों के कान तो कमोबेस हर धर्म-जाति के लोगों में छिदवाए जाते हैं लेकिन लड़कों के कान छिदवाने की परंपरा कुछ ही जगहों पर निभाई जाती है. हालांकि अब फैशन के चक्कर में लड़कों में भी पियर्सिंग कराने का चलन चल पड़ा है. इस बीच यह जानना जरूरी है कि लड़कों का कान छिदवाना या शरीर के किसी अन्य अंग पर पियर्सिंग कराना कितना सही है.
कान छिदवाने के शुभ-अशुभ असर
16 संस्कारों के तहत कान छिदवाने की परंपरा 9 वें नंबर पर आती है. यहां तक कि जब भगवानों ने अवतार लिया है, तब उनके भी कर्णभेद संस्कार हुए हैं. बल्कि पुराने समय में तो राजा-महाराजा समेत सभी पुरुषों का कर्णभेद संस्कार किया जाता था लेकिन अब ये परंपरा केवल कुछ ही जगहों पर निभाई जाती है.
– कान छिदवाने से मस्तिष्क में रक्त का संचार सही तरीके से होता है और इससे व्यक्ति की बौद्घिक योग्यता बढ़ती है. इसलिए बचपन में ही कान छिदवा दिए जाते हैं ताकि शिक्षा शुरू होने से पहले ही बच्चे की मेधा शक्ति बढ़ जाए.
– कान छिदवाने से लकवा या पैरालिसिस नहीं होता है. पुरुषों के मामले में बात करें तो यह फर्टिलिटी के लिहाज से बहुत अच्छा होता है.
– इसके अलावा कान छिदवाने से चेहरे पर ग्लो भी बना रहता है.
नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
[ डिसक्लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]