मृत्यु के समय दर्द क्यों होता हैं?

मृत्यु ऐसी स्थिति है जहाँ जीव को सब कुछ छोड़ कर जाना होता है. मृत्यु अगर नैसर्गिक यानी बुढ़ापे में हो तो इतना ज्यादा दुख नही होता हैं.नाही जीव को और नाही उसके परिवार वाले, उसके सगे सबंधी को. क्यो की उस जीव ने अपना जीवन कार्य काल जी लिया होता है. मगर मरने वाला जीव अगर किसबीमारी,आत्महत्या,एक्सीडेंट की वजह से जीव छोडता है ,तो उसे और उसके परिवार वाले ,सगे संबंधियों को औऱ उसको खुद को भी बहुत दुःख होता है. क्यो की उसके कुछ निजी कर्म ,जिम्मेदारी निभाना, इच्छा आकांक्षा बाकी होती है. उसके आकस्मिक चले जाने से बहुत सी जिंदगियां बिख़र जाती है. जब मरने वाले को पता चलता है कि वो शरीर छोड़ रहा है उस समय उसको ऊपर बताई बाते जहन है आती है,औऱ वो चाहकर भी कुछ नही कर सकता तो उसे बहोत पीड़ा होती है. वो खुद को बहोत असहाय महसूस करता है. यही वजह है कि मृत्यु के समय दर्द होता है.( ये मेरी निजी राय है ,जो मैंने अपने करीबी को खोने के बाद महसूस की है.)मरने वाले के जितना ही दर्द उसके करीबी दोस्त, परिवार, सगे संबंधियों को होता है.( ये भावना मरने वाले व्यक्ति का स्वभाव कैसे था और वो इंसान कैसे था इसके ऊपर निर्भर करती है.)
आत्मा शरीर छोडने से पहले हमने जाने अनजाने जो विकर्म किये थे वो सजाए हमारे सामने आती है और उसी समय वह हिसाब किताब चुक्त करने पडते है। चुकि इस शरीर को चलाने वाली आत्मा है लोग को सही परिचय नही होने के कारण अपने को शरीर समझते है , अत: आत्मा को शरीर छोडते समय दर्द होता है
और अगर मौत को जानना है? तो पहले जीवन को जानना ज़रूरी है। मृत्यु तक पहुँचने में बहुत सारी गांठे बंधी हुई हैं। और हर रोज़ एक -एक गाँठ खुल रहीं है। और तो और जब हम जन्म दिन मनाते हैं हम अज्ञात हैं कि वह जन्म दिन नहीं वह अपनी मृत्यु की घड़ियां नजदीक आ रहीं हैं । जाने अनजाने मृत्यु का ही जश्न मनाते चले जा रहे हैं। और नहीं तो यह क्या होगा। तुम्हारे जीवन का एक वर्ष पूरा हो गया और तुम जन्म दिन कहते हो,