श्री कृष्ण के मरने के बाद उनकी पत्नियों और द्वारिका का क्या हुआ?

श्री कृष्ण के मरने के बाद उनकी पत्नियों और द्वारिका का क्या हुआ?

विष्णु पुराण में कथा है कि, श्रीकृष्ण और यदुवंशियों के शरीर का अंतिम संस्कार करके अर्जुन जब द्वारिका से निकले तो भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा मानकर उनके साथ भगवान श्री कृष्ण की कई पत्नियां और अन्य यदुवंशियों की स्त्रियां भी द्वारिका से साथ चलने लगीं। द्वारिका से उनकी अंतिम विदाई हो रही थी इसलिए जिनके पास जो धन संपदा थी वह साथ में लेकर नगर से निकल चले।

अकेले अर्जुन के साथ द्वारिका की कन्याएं
मार्ग में अकेले अर्जुन के साथ द्वारिका की कन्याएं और वहां की अपार संपदा के आगमन की सूचना मार्ग में रहने वाले लुटेरों और ग्रमिणों तक पहुंचने लगी। सभी लोग द्वारिका की कन्याओं और धन संपदा को पाने के लिए ललचाने लगे हालांकि उनके लिए बड़ी बाधा अर्जुन थे। जिनके पराक्रम को सभी लोग जानते थे लेकिन लालच में अंधा हुआ मनुष्य जान को जोखिम में डालने से भी नहीं चूकता है। सभी ने मिलकर कन्याओं और धन को लूटने का फैसला कर लिया।

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अर्जुन रह गए हैरान
लुटेरे ने ग्रामीणों को धन का लालच देकर उनकी सहायता करने के लिए तैयार कर लिया। अर्जुन सतर्कता से चल रहे थे लेकिन आने वाले खतरे से अंजान थे। मार्ग में अचानक उनको लुटेरों ने घेर लिया और कन्याओं और धन पर अधिकार जमाने लगे। अर्जुन ने सभी को भय दिखाकर भगाने का प्रयास किया लेकिन अर्जुन के किसी भी बात का लुटेरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब अर्जुन ने अपना गांडीव उठा लिया और लुटेरों पर दिव्य बाणों का प्रयोग करना चहा लेकिन, अर्जुन हैरान रह गए।

लुटेरों ने किया अर्जुन का ऐसा हाल
अर्जुन बार-बार मंत्र बोलकर दिव्यास्त्रों को बुला रहे थे लेकिन दिव्याशास्त्र प्रकट नहीं हुए। अर्जुन का दिव्य गांडीव भी सामान्य धनुष के जैसा बन गया। महाभारत युद्ध में पूरी कौरव सेना को पराजित करने वाले अर्जुन आश्चर्य में थे कि उनकी शक्तियों को क्या हो गया है। एक-एक बाण से अर्जुन लुटेरों के समूह पर प्रहार कर रहे थे। लुटेरे ने अग्निदेव से प्राप्त अक्षय तुनीर, जिनमें बाण कभी समाप्त नहीं होते थे उन्हें भी तोड़ दिया और अर्जुन को पराजित करके द्वारिका की स्त्रियों और धन संपदा को अर्जुन के देखते-देखते लुटकर चले गए।

महर्षि व्यासजी ने बताया
अर्जुन शोक में डुबे हुए थे और रो रहे थे। लुटेरों से पराजित अर्जुन किसी तरह से महर्षि व्यास के पास पहुंचे और पूरी स्थिति बताई। व्यासजी ने बताया कि दरअसल तुम जिस शक्ति की बात कर रहे हो और जो कुछ शक्तियां तुम्हारे पास थीं वह तो तुम्हारी थी ही नहीं। सारी शक्तियों के स्वामी तो स्वयं श्रीकृष्ण थे। जब तक वह तुम्हारे साथ थे तब तक उनकी शक्तियां भी तुम्हारी थीं। उनके जाने के साथ वो शक्तियां भी चली गईं। अब यह जो कुछ भी हो रहा है वह उनकी मर्जी से हो रहा है।

श्रीकृष्ण के प्रपौत्र को मिला अधिकार
अर्जुन ने व्यासजी के समझाने पर भगवान श्रीकृष्ण की अंतिम आज्ञा का ध्यान करके उनके प्रपौत्र वज्रनाभजी को यदुवंशियों का राजा बना दिया। वज्रनाभजी उस समय बहुत छोटे थे इसलिए हस्तिनापुर में रहे और पांडवों के स्वर्गारोहण के बाद परीक्षितजी ने इनका ध्यान रखा और बाद में मथुरा मंडल का राजा बना दिया। वज्रनाभजी के नाम पर भी मथुरा और आस-पास का क्षेत्र व्रजमंडल कहलाता है।

नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)

[ डि‍सक्‍लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. The Hindu Media वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

kavya krishna

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