श्रीमद्भागवत गीता क्यों पढ़नी चाहिए

श्रीमद्भागवत गीता क्यों पढ़नी चाहिए

क्या होती है साधना? क्यों करूँ मैं साधना?* 🪔

शरीर से बाहर जो घटनाएँ घट रही हैं, उनसे अप्रभावित रह जाना फ़िर भी आसान है। शरीर के भीतर जब घटना घटती है, उससे अलग रह जाना, उससे अनछुए रह जाना बड़ा मुश्किल है।बाहर से जब कोई उत्तेजित करे आपको, हो सकता है कि आप झेल जाएँ, पर उत्तेजना अगर अपने ही शरीर में उठ रही है, फ़िर क्या करेंगे?

बाहर से कोई कुप्रभाव डाले आपके ऊपर, कुसंगति बने आपके लिए, हो सकता है आप झेल जाएँगे, पर अपने ही मस्तिष्क में अगर कुविचार आ रहे हों फिर?अस्थिर होने के लिए कोई साधना नहीं चाहिए। डगमग डोलने के लिए कोई साधना नहीं चाहिए, प्रभावित हो जाने लिए कोई साधना नहीं चाहिए।

डटे रहने के लिए, अड़े खड़े रहने के लिए तो साधना चाहिए ही होगी।* और सब इन्द्रियाँ, सब प्रभाव, सब संस्कार, सब वृत्तियाँ तुम्हें यही सुझाएँगी कि बह चलो—सुख आया है, बह चलो; उत्तेजना आई है, बह चलो; दुःख आया है, बह चलो; ईर्ष्या आई है, बह चलो।जब तुम्हारी पूरी व्यवस्था लगातार यही सन्देश दे रही हो कि बह चलो, उस वक़्त पर अंगद की तरह पाँव जमाकर खड़े हो जाना और कहना, “मैं नहीं बहूँगा।” ये हुई आत्मा वाली बात।नींद बहाए लिए जा रही है, भूख बहाए लिए जा रही है, कामोत्तेजना बहाए लिए जा रही है, संस्कार बहाए लिए जा रहे हैं, क्रोध बहाए लिए जा रहा है, हम अड़ गए, “मैं नहीं बहूँगा,” यही साधना है। और कोई साधना करनी नहीं होती है।

 

अपने ही बहाव के विरुद्ध खड़े हो जाना कहलाता है साधना।

हम बहाव हैं। और आत्मा बहती नहीं, वो अचल है। प्रकृति बहती ही रहती है, निरंतर चलायमान। देखते हैं कौन जीतता है। तुम बह चले, तुमने प्रकृति को जिता दिया। तुम डट गए, तुम जीत गए।

धार्मिक ग्रन्थ:

बहुत से हिन्दू घरों में श्रीमद्भगवद्गीता एक मुख्य धार्मिक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित होती है| इस ग्रन्थ की मान्यता लगभग वैसे ही होती है जैसे मुसलमानों में क़ुरआन की और ईसाइयों में बाइबल की होती है| मुख्य अंतर यह है कि गीता को सीधे परमेश्वर के मुख से निकले वचनों के रूप में माना जाता है, जबकि कुरआन और बाइबल सामान्यतः क्रमशः मुसलमानों और ईसाइयों के पैगम्बरों के ज़रिये पहुंचे परमेश्वर के वचनों के रूप में मान्य हैं|

तो, यदि आप किसी ऐसे ही हिन्दू परिवार से सम्बन्ध रखते हैं तो निश्चित रूप से आपके लिए गीता का महत्त्व एक मुख्य धार्मिक ग्रन्थ के रूप में बनता है और गीता आपको हिन्दू होने की एक पहचान दिलवाती है| यह अलग बात है कि सामान्य धर्मावलम्बियों द्वारा सामान्यतः धार्मिक ग्रंथों को उनकी लिखित सामग्री के तत्वज्ञान को महत्ता देने के बजाय उनके स्वरुप को एक प्रमाणिक धार्मिक चिन्ह के रूप में मान्यता मिलती है| और उनमें लिखित शब्दों का उच्चारण मात्र या पाठ धार्मिक उद्देश्य पूर्ण कर देता है|

प्रबुद्ध धार्मिक उपदेशकों के लिए सामान्य-जनों तक गीता के श्लोकों के भावार्थ के माध्यम से पाप-पुण्य को समझाना, मुक्ति-मार्ग, धर्म-अधर्म और विभिन्न योगों की व्याख्या करना और ईश्वर प्राप्ति का ज्ञान पहुँचाना समुचित रूप से संभव हो पाता है|

 

दर्शन शास्त्र:

हिन्दुओं का धार्मिक ग्रन्थ होने के अतिरिक्त गीता एक बेहतरीन दर्शन शास्त्र के रूप में दुनिया भर में प्रचलित है| दर्शन-शास्त्र और धार्मिक ग्रन्थ के रूप में जितनी व्याख्याएं और प्रतिव्याख्याएं गीता की हुई हैं उतनी व्याख्याएं कदाचित बहुत ही कम ग्रंथों की होती हैं|जीवन के किसी न किसी मोड़ पर अक्सर व्यक्ति इस प्रश्न से दो-चार होता है कि मैं इस दुनियां में किस उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए हूँ| जन्म से पहले मैं कहाँ था और मृत्यु के बाद कहाँ जाऊँगा| इस जीवन में शांति और संतोष प्राप्ति के लिए मैं क्या करूँ| आदि,आदि|ऐसे प्रश्नों और जिज्ञासाओं का जवाब गीता में उपलब्ध है| रोज़मर्रा की मानसिक व भावनात्मक समस्याओं का समाधान भी गीता में उपलब्ध है|

इसके लिए पहले गीता का अक्षर ज्ञान होना आवश्यक है, फिर उसका भावार्थ जानना, फिर मनन-चिंतन करके समझना और फिर अंतर्मन में प्रतीति होना, फिर आचरण में लाकर चरित्र निर्माण होना और अंततः संस्कार के रूप में गीता ज्ञान आपके व्यक्तित्व का शाश्वत हिस्सा बन सकता है|गीता की मूल भाषा संस्कृत है| लेकिन कई महान मनीषियों ने उसका विभिन्न भाषाओँ में अनुवाद तथा व्याख्याएं की हैं, जो आपको गीता के तत्व को आत्मसात करने में अत्यंत सहायक हैं| लेकिन जितना जितना आप भीतर जाने का प्रयत्न करते हैं लगता है जैसे इस ज्ञान मार्ग का कदाचित कोई छोर ही नहीं है|

admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *