तिरुपति बालाजी के 10 रहस्य जिसे वैज्ञानिक भी नहीं समझ पाए

तिरुपति बालाजी के 10 रहस्य जिसे वैज्ञानिक भी नहीं समझ पाए

क्या आपको पता है कि तिरुपति बालाजी मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है वह असली भगवान की मूर्ति है यह मूर्ति कभी किसी ने नहीं बनाई बल्कि यह स्वयं प्रकट हुई थी दोस्तों की आपको यह पता है कि इस मंदिर में विराजमान वेंकटेश्वरस्वामी की मूर्ति पर लगे हुए बाल उनके असली बाल है दोस्तों आपको जानकारी हैरानी होगी कि यह बाल कभी नहीं उलझते और हमेशा मुलायम रहते हैं दोस्तों आपका स्वागत है  में और आज हम बात करेंगे भारत के एक ऐसे मंदिर के बारे में जहां भगवान स्वयं विराजते हैं और अगर आपने इस मंदिर के रहस्य को सुन लिया तो आपका दिमाग चकरा जाएगा |

दक्षिण भारत के मंदिर बहुत भव्य एवं प्रसिद्ध है तिरुपति बालाजी मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है यह प्रभु वेंकटेश्वर बालाजी का मंदिर है जिन्हें श्री विष्णु का अवतार माना जाता है कि आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में है यह दक्षिण में स्थित तालाब तिरुमाला के पास बना है इसके चारों ओर स्थित पहाड़ियां सूचना के आधार पर सत्य गिरी कहलाती है इस मंदिर का इतिहास पांचवी शताब्दी से शुरू होता है सभी धर्मों के लिए खुला हुआ है

भगवान बालाजी की मूर्ति को किसी ने नहीं बनाया है बल्कि यह मूर्ति यहां पर स्वयं प्रकट हुई थी बालाजी की मूर्ति पर चोट का निशान है जहां औषधि के रूप में चंदन लगाए जाता है बालाजी भगवान की मूर्ति की अश्लील है बालों की विशेषता यह है कि इसमें कभी नहीं पड़ती और यह हमेशा ही साफ दिखाई देते हैं दोस्तों इस मंदिर में किन की प्रसिद्ध परंपरा है मन्नत पूरी होने पर लोग यहां पर केस दान करते हैं इसका यह अर्थ भी है कि बालों के साथ अपने अहंकार घमंड और बुराई को समर्पित कर देना लगभग 20000 लोग रोज यहां प्रदान करते हैं मंदिर की प्रतिमा को ध्यान से सुना जाए तो इसकी भीतर से समुद्री लहरों की आवाज आती है

बालाजी की मूर्ति हमेशा रहती है अब ऐसा क्यों है आज तक पता नहीं चल पाया है मंदिर में रोजाना तीन लाख लड्डू बनते हैं इस मंदिर से करीब 23 किलोमीटर दूर एक गांव है जहां लोग बहुत पुराने नियमों के हिसाब से रहते हैं उसी गांव से लाए गए फूल मंदिर में चढ़ाए जाते हैं उस गांव का किसी को पता नहीं है और ना ही किसी बाहरी व्यक्ति को वहां जाने की आज्ञा है त्रिदेव पर मां लक्ष्मी विराजमान रहती है माता यहां पर रहती है तब पता चलता है जब हर गुरुवार को बालाजी का पूरा उतार कर उन्हें स्नान करवाकर चंदन का लेप लगाया जाता है

जब चंदन का लेप जाता है तो हृदय पर लगे चंदन में देवी लक्ष्मी की छवि उभर आती है दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां पर गर्भगृह में एक दीपक और तिल की हजारों साल से चल रहा है अब यह कैसे होता है इसका कारण का पता आज तक नहीं चल पाया पचाई कपूर को किसी साधन प्रतिमा पर लगाने से वह पत्थर धीरे धीरे चल जाता है लेकिन विग्नेश्वर भगवान का चमत्कार ही है कि कपूर को लेकर आने पर प्रतिमा पर इसका कोई असर नहीं होता है

अन्य मंदिरों की तरह यहां पर भी भगवान को रोज तुलसी पत्र चढ़ाया जाता है लेकिन उसे भक्त को प्रसाद के रूप में नहीं दिया जाता पूजा के बाद उस तुलसी पत्र को मंदिर परिसर में मौजूद थे कोई में डाल दिया जाता है जिसे मुड़कर देखा भी नहीं जाता इस मंदिर में मांगी जाने वाली हर मन्नत पूरी होती है मंदिर के मुख्य द्वार पर दरवाजे की ढाणी और एक छड़ी है इस छड़ी के बारे में कहा जाता है कि बाल्यावस्था में इस छड़ी से ही भगवान बालाजी की पिटाई की गई थी इस कारण उनकी पर चोट लग गई थी इस कारणवश तब से आज तक उनकी छुट्टी पर शुक्रवार को चंदन का लेप लगाया जाता है

ताकि उनका घाव भर जाए भगवान बालाजी के गर्भ गृह में जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि मूर्ति के मध्य में स्थित है वहीं जब गर्भ गृह के बाहर आ कर देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि मूर्ति और स्थित है भगवान की प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर से सजाया जाता है मान्यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्मी का रूप समाहित है इसी कारण से ऐसा किया जाता है इस मंदिर की मूर्ति पर पुष्प माला चढ़ाई जाती हैवैसे तो भगवान बालाजी की प्रतिमा एक विशेष प्रकार की चिकने पत्थर से बनी है मगर यह पूरी तरीके से जीवंत लगती है

यह मंदिर के वातावरण को काफी ठंडा रखा जाता है दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि बालाजी की प्रतिमा का तापमान सदैव 110 फेरन हाइट रहता है और प्रतिमा को पसीना भी आता है जिसे पुजारी समय-समय पर पहुंचते रहते हैं दोस्तों क्या आप जानते हैं कि यह मंदिर दुनिया की सबसे अमीर मंदिरों की गिनती में आता है पर आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां पर विराजित तिरुपति बालाजी गरीब है और कर्ज तले दबे हुए हैं जी हां दोस्तों आपने बिल्कुल सही सुना है यह मंदिर तो अमीर है पर यहां की भगवान गरीब है और इसके पीछे का क्या रहस्य है |

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

 

kavya krishna

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